देश में आर्थिक स्थिति काफी वक्त से खराब चल रही है और अब तो महामारी है और व्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है सरकार को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि हालातों कैसे सुधारा जाए लेकिन वह कर्ज पर कर्ज लिए जा रही है सरकार को अपना फर्ज समझ नहीं आ रहा है।
इसलिए भारत सरकार को भारत वासियों पर कर्ज का भोज बढ़ता ही जा रहा है स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि लोगों का उधार चुकाने के लिए पैसे तक नहीं बचे हैं जिसे मोदी सरकार की परेशानी और ज्यादा बढ़ा दी है।
प्रधानमंत्री दूसरे देशों को पैसा देकर महान बनने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन देश के पास खुद पैसा नहीं है अर्थव्यवस्था इस कदर बदहाल हो चुकी है की कर्ज लेकर खर्चा निकालना पड़ रहा है नौबत यह आ गई है देश कर्जदार बनता जा रहा है।
इस की ताजा जानकारी वित्त मंत्री मंत्रालय की एक रिपोर्ट में सामने आई है एक रिपोर्ट के मुताबिक जून 2020 में आखरी तक सरकार की देनदारी बढ़कर 101.3 लाख करोड़ जा पहुंची मार्च 2020 तक यह कार्य 94.6 लाख करोड़ रुपए था।
जून 2019 में यह देनदारी 88.18 लाख करोड़ की थी वित्त मंत्रालय की ओर से जारी सार्वजनिक कि रण की रिपोर्ट में यह आखिरी सामने आए हैं इस रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के कुल बकाए में सार्वजनिक का हिस्सा 91.1 फ़ीसदी है।
महामारी के दौर ने आर्थिक समस्याओं का अंबाल लगा दिया अगर आंकड़ों की बात करें तो सरकार की देनदारी में केवल अप्रैल-जून तिमाही में 7.1 फ़ीसदी का जाता हुआ है पिछले साल समान अवधि में 0.8 फ़ीसदी थी।
1 साल पहले यानी जून 2019 के अंत में सरकार का कुल कर्ज़ 88.18 लाख करोड़ रुपए था.केवल जून महीने में सरकार ने करीब 3,46,000 करोड़ की डेटा सिक्योरिटी जारी की 1 साल पहले इसी अवधि में 2,21,000 करो रुपए की प्रतिभूतियां जारी की गई थी।
इस अवधि के दौरान वाणिज्य बैंक को हिस्सेदारी 39% और बीमा कंपनियों की हिस्सेदारी 26.2% थी जबकि प्रतिभूतियों की कुल 28.6 फ़ीसदी हिस्सेदारी हो रही है ।
हालांकि केंद्र सरकार ने अप्रैल-जून तिमाही में नगद प्रबंधन बिल जारी कर 80,000 करोड रुपए की रकम जुटाई है लेकिन अब सरकारी खजाना बिल्कुल खाली हो चुका है ऐसे में सरकार से सवाल उठता है कि यह सरकार की नाकाम नीतियां का नतीजा है।