देश में लॉकडाउन लगने से प्रवासी मजदूर अपने घर नहीं जा पा रहे थे, सरकार ने भी महामारी का हवाला देकर उनकी मदद करने से इनकार कर दिया उनसे उनका रोजगार छिन आ गया, जेबो में पैसे नहीं थे खाने को अनाज नहीं था, ऐसे में मजबूर होकर मजदूर आत्मनिर्भर बनकर खुद ही सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर गांव जाने लगे।

यह यात्रा कुछ मजदूरों के लिए अंतिम यात्रा बन गई सैकड़ों किलोमीटर की दूरी गर्मी और भूख से बेहाल बहुत से लोगों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया, लेकिन सरकार खामोश है और जब संसद में विपक्ष ने सरकार से सवाल किया है कि लॉकडाउन के दौरान कितने मजदूरों की जान गई तो केंद्र ने जवाब दिया कि उसके पास इस संबंध में कोई आंकड़े नहीं है।

कोरोना संक्रमण के दौरान 25 मार्च देश भर में लगाए गए 68 दिनों के लॉक डाउन के दौरान बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन हुआ और इस कठिन सफर में कई मजदूरों की मौत भी हुई है, लेकिन जब लोकसभा में यह मुद्दा उठा कर तो श्रम मंत्रालय ने साफ कर दिया कि उसके पास मजदूरों की मौत का कोई आंकड़ा नहीं है, यानी डाटा नहीं है तो मजदूरों के मौत का मुआवजा देने का कोई सवाल ही नहीं उठता।

हालांकि सरकार ने माना कि एक करोड़ मजदूर अपने अपने घरों को लौटे थे, दरअसल सरकार से पूछा गया था कि लॉकडाउन में अपने परिवारों तक पहुंचने की कोशिश में जान गंवाने वाले प्रवासी मजदूरों के परिवारों को क्या मुआवजा दिया गया? जिस पर सरकार की ओर से जवाब दिया गया कि के पास मजदूरों के मौत का कोई आंकड़ा नहीं है।

आपको बता दे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को संपूर्ण लॉकडाउन का एलान किया था जिसके बाद पूरे देश में काम धंधे कल कारखाने फैक्ट्रिया बंद हो गई, जिससे प्रवासी मजदूरों के सामने रोजगार ना होने की वजह से खाने पीने की दिक्कतें आने लगी। जिस कारण लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटने लगे।

सरकार के इस गैर जिम्मेदाराना जवाब पर राहुल गांधी में यह शायराना अंदाज में तंज कसा है उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि – मोदी सरकार नहीं जानती कि लॉकडाउन में कितने प्रवासी मजदूर मरे और कितनी नौकरियां गईं कांग्रेस नेता ने लिखा तुमने ना गिना तो क्या मौत ना हुई, हां मगर दुख है सरकार पर असर ना हुआ, उनका मरना देखा जमाने ने एक मोदी सरकार है जिसे खबर ना हुई,

केंद्र सरकार के इस जवाब को सुन कर कहा जा सकता है कि लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को जिस तरह सरकार ने नजरअंदाज किया, सरकार को इसका कोई मलाल नहीं है उसे फर्क नहीं पड़ता कि अचानक लगाए गए लॉकडाउन से मजदूरों को क्या कुछ झेलना पड़ा और कितने मजदूर इस त्रासदी में मारे गए, मारे गए मजदूरों के परिवारों की क्या स्थिति है यह सवाल केंद्र सरकार को गैर जरूरी लगते हैं।

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