आपको बता दें कि लगातार पिछले 3 कार्यकाल से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री रही ममता बनर्जी द्वारा अपने समर्थकों के साथ सीबीआई ऑफिस पर धरना देने की पुरानी बातों का हवाला दे। टीएमसी पार्टी के नेताओं की हाउस अरेस्ट को अस्वीकार कर रही सीबीआई से मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, ”वह कानून व्यवस्था का अनुपालन न करने पर सीएम और साथ ही कानून मंत्री पर एक्शन लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। लेकिन उनके कर्मों का खामियाजा जवाब देने वाला पक्ष नहीं भुगत सकते।
बता दे कि कोर्ट का कहना था कि नेताओं के धरने आदि की तारीफ नहीं की जा सकती। न ही कोर्ट सीएम और साथ ही कानून मंत्री के असंवैधानिक कार्यों का समर्थन करता है। जवाबी पक्ष की जमानत और नेताओं के कार्य दोनों अलग-अलग मसले हैं। इन दोनों कार्य को एक समान से नहीं देखा जा सकता है ।
हम मुख्यमंत्री और कानून मंत्री के कार्य का समर्थन नहीं करते– सुप्रीम कोर्ट
टीएमसी नेताओं के नजर बंदी के उपदेश में दखल नहीं देते हुए, संवैधानिक पीठ का काम समझते हुए सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका वापस ले ली है। आपको बता दें कि नारद घोटाले में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर गिरफ्तार किए गए सभी टीएमसी नेताओं के नज़र बंद के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
आपको बता दें कि सीबीआई ने राजनेताओं की गिरफ्तारी पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कार्यकर्ताओं के साथ सीबीआई ऑफिस पर धरना–प्रदर्शन देने और साथ ही सीबीआइ दफ्तर में कार्यरत अधिकारियों के दफ्तर से बाहर नहीं निकलने देने की भी पुरानी स्थिति को आधार बनाया था। साथ ही साथ पश्चिम बंगाल के कानून मंत्री का निर्देश आने तक सुप्रीम कोर्ट में रहने के भी दबाव को भी दांवपेच अपनाने की तरह दिखाया गया था।
जानिये पूरा मामला क्या है
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई दफ्तर पर अपने समर्थकों के साथ धरना देती है। वही भीड़ सीबीआई ऑफिस पर पत्थर बाजी भी करती है, जिसके वजह से अधिकारी दफ्तर से बाहर नहीं निकल पाते हैं। सीबीआई के लोक अभियोजक जमानत का विरोध करने के लिए कोर्ट नहीं पहुंच पाते और उन्होंने मोबाइल फोन के जरिये बहस भी की। तो वही दूसरी तरफ राज्य के कानून मंत्री आदेश आने तक कोर्ट में जमे रहते हैं।
आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और कानून मंत्री दोनों मिलकर सीबीआई पर दबाव बनाती है। तो वही मुख्यमंत्री गिरफ्तार लोगों के समर्थन में आ जाती है। इस स्तिथि में हुई कोर्ट की सुनवाई पर ऊपरी अदालत को गौर करना चाहिए। मेहता का कहना था कि मामले को राज्य के बाहर भेजना जरूरी है। परंतु संवैधानिक पीठ उनकी दलीलों से कतई भी सहमत नहीं हुई। पीठ ने कहा, मामले की सुनवाई हाईकोर्ट की 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है। मामले को राज्य से बाहर स्थानांतरित करना हाईकोर्ट को हतोत्साहित करना होगा।