आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र गिर्डी के विधायक कैलाश मीणा, दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र से विधायक गौतम मीणा, आसपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक गोपीचंद मीणा और घाटोल से विधायक हरेंद्र निनामा वोटिंग से पहले गायब हो गए. वोटिंग कराने के लिए भाजपा के नेता इनकी तलाश में जुटे रहे, लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी. इन विधायकों के मोबाइल फोन भी स्वीच ऑफ थे. अंत में मजबूर होकर भाजपा ने वोटिंग कराने की मांग नहीं की.

राजस्थान कांग्रेस में 35 दिन तक चले सियासी ड्रामे ने भाजपा नेताओं की एकता के दावों की भी पोल खोल दी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चले सियासी संग्राम का लाभ उठाने की कोशिश में जुटी भाजपा में इस कदर गुटबाजी बढ़ी कि राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री वी.सतीश को अचानक जयपुर आना पड़ा। वे शनिवार और रविवार दो दिन जयपुर में रहे। इस दौरान उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की और एक होकर कांग्रेस सरकार के खिलाफ मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने का आग्रह किया। करीब डेढ़ साल पूर्व सत्ता खोने के बाद से ही भाजपा दो खेमों में है। एक खेमा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है तो दूसरा खेमा उनके विरोधियों का है।

वसुंधरा विरोधी खेमे में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया व उप नेता राजेंद्र राठौड़ शामिल हैं। दोनों खेमों की आपसी लड़ाई 14 अगस्त को विधानसभा सत्र में साफ दिखाई दी। इस लड़ाई के चलते ही भाजपा ने ऐन वक्त पर गहलोत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला टाला। गहलोत सरकार विश्वसमत प्रस्ताव विधानसभा में लाई और हासिल भी किया। भाजपा नेतृत्व के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि व्हिप जारी करने के बावजूद विधानसभा से चार विधायक अचानक गायब हो गए।

ये विधायक ना तो विपक्ष के नेता और उप नेता की अनुमति लेकर गए और ना ही प्रदेश अध्यक्ष को इस बात की जानकारी दी, जबकि तीनों ही सदन में मौजूद थे। गायब होने वाले चारों विधायक आदिवासी इलाके के गोपाल मीणा, हरेंद्र निनामा, गौतम मीणा व कैलाश मीणा हैं। विधानसभा से बाहर निकल कर इन विधायकों ने अपने मोबाइल फोन भी बंद कर दिए। चारों विधायक सुबह विधानसभा में आए, विधायक दल की बैठक में भी शामिल हुए, लेकिन बाद में गायब हो गए। इन विधायकों के गायब होने और गुटबाजी बढ़ने से चिंतित वी.सतीश जयपुर आए। यहां नेताओं से बातचीत करके वापस दिल्ली लौटे हैं।

विधायकों ने नहीं मानी थी प्रदेश नेतृत्व की बात
प्रदेश भाजपा की गुटबाजी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विधानसभा सत्र से तीन दिन पूर्व प्रदेश नेतृत्व ने उदयपुर व कोटा संभाग के 30 विधायकों को गुजरात भेजने का निर्णय किया था। इसके लिए तीन चौपर भी मंगवाए गए थे, लेकिन इनमें से 11 विधायकों ने जाने से इन्कार कर दिया। 19 विधायक ही गुजरात गए। तीन दिन तक भाजपा के तीन चॉपर जयपुर एयरपोर्ट पर खड़े रहे। नेता फोन करते रहे मगर विधायकों ने यह कह कर जाने से मना कर दिया कि जब तक वसुंधरा राजे का आदेश नहीं होगा, वे कहीं नहीं जाएंगे। उस समय राष्ट्रीय नेतृत्व ने बगावत को भांपते हुए पर्यवेक्षक के रूप में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और महासचिव मुरलीधर राव को भेजा था । 

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