गंगा के किनारे बसे शहरों में बनारस स्वच्छता की रैंकिंग में पहले पायदान पर आया है. यह सुनकर लगेगा कि पूरा बनारस साफ़ हो गया है लेकिन ऐसा नहीं है. ये बात शहरों  की ओवरआल  रैंकिंग भी बताती है कि तमाम कोशिशों और  प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के बावजूद अभी ये 27 वें पायदान पर है. इसके पहले के सर्वेक्षण में भी बनारस पिछड़ता ही रहा है. साल 2016 के 73 शहरों की रैंकिंग में तो इसका स्थान 65 वां था. साफ़ है कि अभी भी कई जगह इसके दामन में कूड़े और सीवर के पानी के दाग नज़र आते हैं. 

साफ़ नज़र आ रहे बनारस के इन घाटों ने 2 साल पहले शुरू हुए गंगा के किनारे की स्वच्छता की रैंकिंग में बनारस को पहले पायदान पर पहुंचाया. लेकिन इससे पूरा शहर अव्वल नहीं हो गया. अभी भी सिंचाई कॉलोनी के बाहर  सड़क पर पड़ा कूड़ा  स्वच्छता की रैंकिंग में पहले पायदान पर पहुंचे बनारस को मुंह चिढ़ा रहा है. इसी की तरह शहर के दूसरे इलाकों में भी पड़ा कूड़ा इस रैंकिंग के दामन पर दाग है.  

स्थानीय नागरिक गोविन्द कहते हैं कि “शहर का जो प्रमुख स्थान है जैसे भारत माता मंदिर, ट्रामा सेंटर जहां कोविड 19 का इलाज हो रहा है और सारे अगल बगल के इलाके हैं, वहां सीवर का पानी… यानी घर के अंदर गंदगी, घर के बाहर गंदगी, आखिरकार स्वच्छता को लेकर क्या दिखाना चाहते हैं.” 

कूड़े के साथ अलग-अलग इलाकों में बहता सीवर का पानी भी न सिर्फ इस रैंकिंग पर पानी फेरता नज़र आता है, बल्कि बनारस को शहरों की स्वच्छता की रैंकिंग में 27 स्थान पर भी ढकेल दिया है. प्रदूषण पर काम करने वाले लोग कहते हैं कि सफाई में नहीं बल्कि गन्दगी में अभी भी अव्वल है बनारस. 

प्रदूषण पर काम करने वालीं एकता ने कहा कि “सिर्फ सडकों पर झाड़ू लगा देने का सर्वे लेकर इसे अव्वल नहीं कहा जा सकता. आप देख लें कि सिर्फ एक या दो बरसात के बाद से सीवर का पानी बजबजा के जिस तरह सड़कों पर आ जाता है. ये जो कूड़ा है पॉलीथिन है सीवर में जिस तरह से जमा है, वो इसको कहीं न कहीं आइना दिखाता नज़र आता है कि देखो हम एक नंबर पर हैं या कहीं और हैं.” 

गौरतलब है कि बनारस की आबादी  लगभग 20 लाख है जहां प्रतिदिन 600 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है. हर घर से निकलने वाले इन कूड़ों के उठान की तमाम कोशिशें हुईं लेकिन अभी भी ये मुकम्मल नहीं हो पाया है और इस पर बदहाल सड़कें और सीवर का पानी शहर को स्वच्छता की सीढ़ी चढ़ने नहीं देता. 

नगर आयुक्त गौरांग राठी ने कहा कि “हम लोग 27 वें स्थान पर हैं, प्रथम रैंक से 26 रैंक पीछे. जाहिर सी बात है कि कुछ कमियां भी हैं. हम लोग अभी अपना डोर टू डोर तक कम्लीट नहीं करवा पाए थे, हालांकि हम लोग जनवरी से प्रयासरत थे और मार्च में हम लोगों ने एक कंपनी को पूरे शहर के लिए टेंडर दिया है. इससे आगे की रैंकिंग ठीक हो जाएगी.” 

स्वच्छता को लेकर फिलहाल की हकीकत यही है कि प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र और रैंकिंग के हिसाब से देखेंगे तो बनारस अभी पूरी तरह स्वच्छ नज़र नहीं आएगा. और यह हाल तब है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता की शुरुआत यहीं से की थी और बनारस की गलियों में झाड़ू भी लगाई थी.

गंगा की किनारे के घाट बनारस का चेहरा हैं जो भले ही स्वच्छता की रैंकिंग में अव्वल आ गया हो लेकिन उसका पूरा बदन यानी बनारस शहर के दामन में कई जगह सीवर और कूड़े के दाग हैं, जो प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के नाते और ज़्यादा गाढ़े नज़र आते हैं.

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