मोदी सरकार की दबाव डालने वाली नीतियों से असहमत होकर भारतीय रिजर्व बैंक के जिन शीर्ष अधिकारियों ने पद छोड़ा, वे अब इन बातों का खुलासा करने लगे हैं. रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपनी पुस्तक ‘क्वेस्ट फॉर रिस्टोरिंग फाइनेंशियल स्टेबिलिटी’ (वित्तीय स्थायित्व के पुनरुद्धार की तलाश) में लिखा है कि सरकार रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को लगातार कमजोर करने की कोशिश कर रही है, इसीलिए आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल को समय से पहले पद छोड़ना पड़ा. इस पुस्तक में आचार्य ने मोदी सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं व कहा है कि केंद्र सरकार इस नियामक (रेगुलेटर) की स्वायत्तता में अतिक्रमण कर रही थी, विवेकपूर्ण कदमों को पीछे करवा रही थी, अतार्किक मांगें रख रही थी, इसकी वजह से उर्जित पटेल को 2018 में गवर्नर पद से इस्तीफा देना पड़ा.
वित्त मंत्री से मतभेद था
इसके अलावा गत 24 जुलाई को रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल की पुस्तक भी रिलीज हुई जिसमें उन्होंने भी सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. उर्जित पटेल ने कहा कि तत्कालीन वित्त मंत्री के साथ उनका मतभेद दिवालिया मामलों को लेकर सरकार के फैसलों से शुरू हुआ, जिनमें कंपनियों के साथ काफी नरमी बरती गई थी. रिजर्व बैंक पर इस बात के लिए काफी दबाव डाला जा रहा था कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए नकदी और कर्ज का मुहाना खोल दे. इतना ही नहीं, एनपीए वाले कर्जदारों पर रिजर्व बैंक की सख्ती को भी रोक दिया गया था. कर्ज में राहत देने वाले इस अधोपतन ने पिछले एक दशक में भारतीय वित्तीय सेक्टर की स्थिरता को जिस तरह से नुकसान पहुंचाया, उसको दुरुस्त कर पाना मुश्किल है.
राहुल ने भी लगाया आरोप
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी डिफाल्टर्स को बचाना चाहते थे इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल की नौकरी गई. पटेल ने बैंकिंग व्यवस्था को साफ करने का प्रयास किया. पीएम नहीं चाहते थे कि पटेल जानबूझकर कर्ज डुबोने वालों के खिलाफ कोई कदम उठाएं. राहुल गांधी ने संसद के बजट सत्र में 50 विलफुल डिफाल्टरों के नाम सरकार से पूछे थे. कांग्रेस भी लगातार डिफाल्टरों को बचाने का आरोप सरकार पर लगाती रही है. सूचना के अधिकार के तहत कांग्रेस ने जानकारी मांगी थी जिस पर रिजर्व बैंक ने बताया था कि स्वेच्छा से दिवालिया घोषित करने वाले 50 लोगों का 68,000 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज एनपीए (बट्टे खाते) में डाल दिया गया. इनमें पीएनबी घोटाले में शामिल मेहुल चोकसी का भी नाम था.
किताबें लिखकर जाहिर करते हैं असहमति
पहले देखा जाता था कि विभिन्न राजनेता पद से हटने के बाद आलोचनात्मक तरीके से पुस्तक लिखकर अपना दुखड़ा बयान करते थे. उस समय उनके पास कुछ खोने के लिए नहीं होता था और पुराने संस्मरणों के संदर्भ में वे कुछ तीखी बातें लिख जाते थे. अब इस दौर में शीर्ष अधिकारी भी शामिल हो गए हैं जो पद पर रहते समय सरकारी नियमावली व अनुशासन के तहत मुंह नहीं खोल सकते लेकिन पद से इस्तीफे या निवृत्त होने के बाद वे किताब लिखकर अपनी भड़ास निकालते हैं.
कितना भी शीर्ष अधिकारी क्यों न हो, उसे पद पर रहते हुए सिस्टम में चलना पड़ता है. उसकी व्यक्तिगत सहमति-असहमति कोई मायने नहीं रखती. अपने राजनीतिक आकाओं का आदेश मानना उसके लिए बंधनकारी रहता है जो कि ज्यादा व्यापक परिप्रेक्ष्य में विचार कर नीति निर्धारण करते हैं. सरकार का अपना दृष्टिकोण व तर्क रहता है. जो शीर्ष अधिकारी उसे नहीं मानना चाहता, उसके लिए इस्तीफे का रास्ता खुला है. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर एन रघुराम राजन ने भी एक्सटेंशन स्वीकार न करते हुए शिकागो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के अपने पुराने पद पर लौटना उचित समझा था. कोई अधिकारी कितना ही बड़ा विशेषज्ञ क्यों न हो, उसे आंख मूंदकर उन नीतियों का अनुसरण करना पड़ता है जो सरकार निर्धारित करती है.