एक तरफ किसान सड़कों पर है वहीं दूसरी तरफ बिहार चुनाव की सरगर्मियां बढ़ती ही जा रही है. विपक्ष किसानों के समर्थन में उतर रहा है और सरकार किसानों को यह भरोसा दिला रही है कि उसने जो भी किया है किसानों के हित के लिए किया है लेकिन बिहार के किसानों को सरकार ने धोखा दिया है।
सरकार ने मदद के नाम पर उनके साथ छल किया, खुद को किसानों के मसीहा बताने वाली सरकार की ओर आज देशभर के किसान उम्मीद की नजरों से देख रहे हैं, किसान सरकार से कृषि बिल वापस लेने की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार अपने फैसले पर अडिग है।
बिल वापस लेने की सरकार की कोई मंशा नहीं दिख रही है. और ना ही सरकार किसानों की मदद के लिए उनकी फसलों को खरीद रही है, यह मामला सामने आया है, बिहार से बिहार में चुनाव होने वाला है, और ऐसे में सरकार जनता को अपनी खुबिंया गिना रही है। जानकारी के अनुसार सरकार ने किसानों के खरीद लक्ष्य का 1% गेहूं भी नहीं खरीदा।
बिहार सरकार की सहकारिता विभाग ने जानकारी साझा की है, कि इस साल बिहार सरकार द्वारा किसानों से सात लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन सरकार ना केवल 4920 10 यानी सिर्फ 0.081 फीसदी की खरीद की है, यानी बिहार सरकार द्वारा 7 लाख टन गेहूं खरीदने के लक्ष्य की तुलना में 1फीसदी से भी कम गेहूं खरीदे हैं।
खास बात यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुरू में निर्धारित 2 लाख टन गेहूं खरीदने के लक्ष्य को यह कहते हुए बढ़ाया था कि कोरोना वायरस के कारण किसानों अपनी उत्पाद बेचने में समस्या हो रही है, इसीलिए सरकार अधिक से अधिक खरीद कर रही है, लेकिन खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार सरकार बिहार में केवल 1002 किसानों से खरीदने में ही कामयाब रही है।
वैसे इस मामले में सरकार कुछ भी कह ले लेकिन पुराने आंकड़े भी सरकार के पलड़े को भारी नहीं कर पा रहे हैं, पिछले साल रबि फसल खरीद में बिहार सरकार ने इस साल से भी कम 2852 टन गेहूं खरीदा था जो कुल उत्पादन का महज 0.055 फीसदी था।
बिहार में भारतीय खाद्य निगम के महाप्रबंधक ने बताया था पिछले पांच-छह सालों में बिहार मैं गेहूं की खरीद लगभग शून्य हैं, ऐसे में किसानों के आगे तो चारों तरफ खाई ही खाई है, सरकार ना तो किसानों की बाधा अनुसार उनकी मदद करती है, और ना ही उनकी मांग सुनती है।