सुधीर चौधरी की कुछ बेतुका रिपोर्टिंग:
* परमाणु हमले के दौरान बचाव का उपाय बताते नजर आएं
* 2000 के नोट में चिप लगाते नजर आए सुधीर चौधरी

ये बात एकदम सही कही है सुधीर जी ने. परमाणु हमले के दौरान अगर आप घर से बाहर निकले तो परमाणु के फटने पर एक आध अणु आपको भी उछट कर लग सकता है. ऐसे में कोशिश करें कि जब तक भुड़ुम भुड़ुम की आवाज आती रहे, तब तक घर में ही कोई इंटरेस्टिंग सा काम करते रहें. अगर आप शादीशुदा हैं तो टीवी पर न्यूज़ लगा लें ताकि बीवी दूसरे कमरे में चली जाए. अगर कंवारे हैं तो कोई फिल्म भी देख सकते हैं. घर में बच्चे हों तो उनके सामने चैनल चेंज करने की कोशिश ना करें, क्यूंकि उनके मतलब का चैनल दिखते ही वे शोर मचाना शुरू कर देते हैं. फिर जब भुड़ुम भुड़ुम की आवाज एकदम बंद हो जाए तो भी बाहर ना निकलें, क्यूंकि कई बार कुछ अणु लेट फटते हैं. कुछ अणु फुस्सी भी निकलते हैं. लेकिन उनमे कुछ देर सवेर फट जाते हैं, इसलिए सावधान रहे. फिर जब मदद वाला आ जाए तो उससे मदद लेकर पेमेंट कर दें. लेकिन ध्यान रहे की अगर वो सही समय पर सही मदद लेकर आया हो तभी उसे 5 स्टार रेटिंग दें, वरना तो 4 स्टार बहुत रहती है.

Screenshot 20200726 072556 Chrome

सुधीर चौधरी सबसे ज्यादा जेएनयू, टुकड़े-टुकड़े गैंग, पाकिस्तान में गरीबी, हिन्दुओं की कम होती आबादी, मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा, गांधी परिवार, कश्मीर और हिंदी भाषा आदि विषयों पर डीएनए शो करते नज़र आए.
तिहाड़ जेल की खा चुके हैं हवा
सुधीर चौधरी और समीर अहलूवालिया को दिसंबर 2012 में गिरफ्तार किया गया था। आरोप था कि उन्होंने जिंदल समूह के ख़िलाफ़ ख़बरें रोके के लिए सौ करोड़ रुपये माँगे। रुपये माँगने की यह बातचीत कंपनी के अधिकारियों ने रिकार्ड कर ली थी। दोनों 14 दिन तक तिहाड़ जेल में रहे। फिर उन्हें ज़मानत मिल गई।

मगर जेल से निकलने के बाद किसी शर्मिंदगी के बजाय ज़ी न्यूज़ के मालिक सुधीर चंद्रा ने चैनल की कमान वापस सुधीर चौधरी को सौंप दी। चौधरी की अगुवाई में ज़ी न्यूज़ ने बीजेपी के लिए खुलकर कैंपेनिंग की। पत्रकारीय धर्म को तार-तार करने वाले चौधरी को इसका इनाम भी मिला। मोदी सरकार ने 2015 में सुधीर चौधरी को एक्स श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करा दी।

मामला 2012 का है. जब उद्योगपति नवीन जिंदल के उद्योग समूह द्वारा, ज़ी समूह के सम्पादक- सुधीर चौधरी और समीर अहलूवालिया का स्टिंग किया गया था. जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) द्वारा जारी वीडियो फुटेज ने दिल्ली और देश के मीडिया जगत को हिला कर रख दिया था.

सितंबर, 2012 में, इसके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई गई. इसके बाद जेएसपीएल के मानव संसाधन विभाग के निदेशक ने आरोप लगाया कि ज़ी न्यूज़ के सम्पादक चौधरी और ज़ी बिजनेस के सम्पादक समीर अहलूवालिया ने उनकी कम्पनी से 100 करोड़ रुपये की वसूली करने की कोशिश की.

दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच ने इस पर कार्रवाई की. चौधरी और अहलूवालिया दोनों को नवंबर 2012 में गिरफ्तार कर लिया गया. करीब दो महीने तिहाड़ जेल में रहने के बाद उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया था. 2013 में, दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने चौधरी, अहलूवालिया और ज़ी समूह के प्रमुख सुभाष चंद्रा को आरोपी बनाते हुए आरोपपत्र दाख़िल करने का आवेदन किया. हालांकि आरोपपत्र में  ख़ामियों को उजागर करते हुए मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेने से इनकार किया और पुलिस को इस मामले की और गहराई से जांच करने के लिए कहा.

इसने जेएसपीएल और ज़ी समूह के बीच अरोप प्रत्यारोप का अंतहीन दौर शुरू कर दिया. इसके साथ ही दोनों पक्षों ने एक दूसरे के खिलाफ क़ानूनी मामले भी दर्ज करवाना शुरू कर दिया. जांच एजेंसी, पुलिस, सरकारी अभियोजन पक्ष और इन सबके साथ अदालतों को भी इन मामलों से निपटने के लिए समय और ऊर्जा लगानी पड़ी.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here