नामुमकिन मुमकिन हुआ। महाराष्ट्र के वसई से गोरखपुर के लिए चली श्रमिक स्पेशल राउरकेला पहुंच गई। ऐसा भारत में पहली बार हुआ है। ट्रेन के गलत रूट पर बढ़ते ही सवाल उठना चाहिए था कि यह इधर कहां पर कहीं किसी ने नहीं पूछा और वह कोई 750 किलोमीटर दूर राउरकेला पहुंच गई…
आज जो मजदूर अपने गांवों की ओर जा रहे हैं, वे विभाजन के समय के शरणार्थी- जैसे नहीं हैं लेकिन सत्ताधीशों ने इन्हें पूरी तरह त्याग दिया है। इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। ये वे हैं जो जी तोड़ श्रम करने वाले आकांक्षापूर्ण वर्ग के लोग हैं, जिन्होंने दशकों से हमारी अर्थव्यवस्था का चक्का थाम रखा है और जिन्हें आज धनी-मानी लोगों, उन्हें रोजगार देने वाले लोगों, सरकार, मध्य वर्ग- सबने त्याग दिया है। ये लोग इन लोगों को सड़क पर जाते देखकर इनसे सिर्फ इसलिए घृणा कर रहे हैं कि वे अपने विशिष्ट होने पर शर्मिंदा हैं, फिर भी ये इनकी मदद नहीं करेंगे।
मुंबई में काम और मजदूरी के बिना फंसे सैकड़ों प्रवासी मजदूरों ने राहत महसूस की होगी क्योंकि वे आखिरकार उत्तर प्रदेश में अपने ग्रामीण घरों में लौटने के लिए एक ट्रेन में सवार हुए, लेकिन जब वे अगली सुबह उठकर घर जाने के लिए तैयार हुए और अपने पीछे अपना क्रम लगाया, तो उन्होंने खुद को गोरखपुर में स्थित अपने घर पर नहीं, बल्कि ओडिशा में लगभग 750 किमी दूर पाया|
विशेष ट्रेन, जो गुरुवार 21 मई को महाराष्ट्र के वसई स्टेशन से रवाना हुई थी, रात भर एक पूरी तरह से अलग मार्ग से यात्रा की और उन्हें राउरकेला ले गई।
नाराज और भ्रमित, जब उन्होंने पूछा कि ऐसा क्यों हुआ है, तो उन्होंने कहा कि उन्हें वहां मौजूद अधिकारियों द्वारा सूचित किया गया था कि कुछ मिक्स-अप के कारण ट्रेन के चालक ने अपना रास्ता खो दिया था। लेकिन रेलवे ने इस बात से इंकार किया है कि गलत मार्ग के कारण चालक अपना रास्ता खो रहा था और उसने कहा कि गंतव्य का परिवर्तन डिजाइन द्वारा किया गया था।
लेकिन सवाल यह है कि ट्रेन में यात्रा कर रहे प्रवासी कामगारों को सूचित क्यों नहीं किया गया। गोरखपुर के लिए राउरकेला ट्रेन कब रवाना होगी, इसके बारे में भी उन्हें नहीं बताया गया है।
रेलवे ने अपने दिए बयान में कहा, “हमने डायवर्ट किए गए रूटों पर कुछ श्रमिक ट्रेनें चलाने का फैसला किया है। कुछ ट्रेनों को बिहार के लिए राउरकेला के रास्ते से हटा दिया गया।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह अपने फेसबुक पोस्ट पर इस बारे में लिखते हैं कि ‘नामुमकिन मुमकिन हुआ। महाराष्ट्र के वसई से गोरखपुर के लिए चली श्रमिक स्पेशल राउरकेला पहुंच गई। ऐसा भारत में पहली बार हुआ है। ट्रेन के गलत रूट पर बढ़ते ही सवाल उठना चाहिए था कि यह इधर कहां पर कहीं किसी ने नहीं पूछा और वह कोई 750 किलोमीटर दूर राउरकेला पहुंच गई। अनुमान लगाइए रास्ते में कितने स्टेशन पर बिना जाने आगे बढ़ने के लिए झंडी दिखा दी गई होगी और जिस रूट पर जाना था वहां नहीं आने पर किसी ने पूछा नहीं … रेलवे के अफसर अब कह रहे हैं कि ट्रेन को उस रास्ते ले जाया जा रहा है नक्शा देखिए तो रास्ता समझ मेंआएगा और यह भी रेलवे किस 85 प्रतिशत की छूट की बात कर रहा था।’