राजस्थान की राजनीति में जादूगर की उपाधि पाने वाले सीएम अशोक गहलोत का जलवा राजस्थान में हर कोई जानता है। या यूं कहें कि प्रदेश में गहलोत को राजनैतिक विश्लेषक ऐसे ही जादूगर नहीं कहते। वर्तमान में सियासी संकट के बीच भी सरकार को ऊभार कर लाने वाले सीएम गहलोत तीसरा मौका है कि जब उन्होंने प्रदेश की कमान संभाली हो.
राजस्थान की राजनीति में सीएम अशोक गहलोत का कद सबसे ऊंचें पद पर दिखाई देने लगा है। जहां विरोधी हर बार अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस में कई शीर्ष पदों पर बने रहने को लेकर कटाक्ष करते रहते हैं। वहीं ऐसा कई बार हुआ है कि जब गहलोत के राजनैतिक कुशाग्र के चलते उनके विरोधियों को मुंह की खानी पड़ी है।
राजस्थान की राजनीति में इतना बड़ा कद पाने वाले अशोक गहलोत आखिर किन वजहों से प्रदेश कांग्रेस में एक छत्र राज करते हैं, इसे समझना बेहद जरूरी है। ऐसा नहीं कि राजस्थान कांग्रेस में पिछले इतने सालों में किसी भी नेता ने मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश नहीं की हो, लेकिन गहलोत के राजनैतिक कौशल के आगे टिक पाना कई दिग्गज नेताओं के लिए संभव नहीं हो पाया। राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत ने कैसे कई दिग्गज व मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को घर जाने पर मजबूर कर दिया।
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच पैदा हुआ विवाद खत्म होने के बाद शिवसेना ने बीजेपी पर निशाना साधा है।
शिवसेना ने बुधवार को कहा कि राजस्थान में ‘ऑपरेशन लोटस’ की विफलता ‘राजनीतिक घमंड’ की हार है। राजस्थान मामले को लेकर शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में बीजेपी पर जमकर हमला बोला।
सामना के सम्पादकीय में कहा गया है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ‘ऑपरेशन लोटस का ही ऑपरेशन’ करके भाजपा को सबक सिखाने का काम किया है।’
इतना ही नहीं सम्पादकीय में महाराष्ट्र में पिछले साल राजभवन में जल्दबाजी में आयोजित किये गए शपथग्रहण समारोह का हवाला देते हुए लिखा कि ‘महाराष्ट्र में सुबह तड़के किया गया, यह ऑपरेशन विफल हो चुका है। कम से कम अब तो भाजपा को इससे सबक लेनी चाहिए। कुछ फर्जी डॉक्टरों द्वारा महाराष्ट्र में ऑपरेशन करने की नई तारीख अब सितंबर में है।’
मुखपत्र में यह कहा गया कि जहां बीजेपी की सरकार नहीं है, वह उन राज्यों में सरकारों को अस्थिर करने में इस कदर व्यस्त है कि जैसे देश के सामने दूसरी कोई परेशानियां ही नहीं है।
सम्पादकीय में कहा गया कि कोरोना वायरस महामारी के जाने का कोई संकेत नहीं है। देश में बेरोजगारी बढ़ रही है और अर्थव्यवस्था रसातल में है। इन सभी को पटरी पर लाने के बजाय भाजपा दूसरे राज्यों की सरकारों को गिराने में व्यस्त है। क्या यह राजनीतिक मानसिक बीमारी का संकेत नहीं है?
गौरतलब है कि शिवसेना सामायिक विषयो पर अपने मुखपत्र सामना के सम्पादकीय के माध्यम से अपनी राय रखती रही है। इससे पहले भी शिवसेना ने कई मौको पर सामना के सम्पादकीय में बीजेपी और पीएम मोदी का नाम लेकर सीधा हमला बोला है।