राफेल विमान एक बार फिर सुर्खियों में हैं ये विमान भारत आ चुके हैं और आजकल एलएसी पर उड़ान भर रहे हैं लेकिन इस समय चर्चा इनकी उड़ान की नहीं बल्कि रक्षा खरीद नीति पर है इसका खुलासा CAG ने बीते हफ्ते एक रिपोर्ट में किया था।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षण यानी कैग ने राफेल को लेकर बड़ा खुलासा किया है कैग ने संसद में अपना रिपोर्ट पेश किया है जिसमें कहा गया है कि अप्रैल 2016 में फ्रांस के साथ राफेल जेठ की खरीद से पहले सरकार ने रक्षा खरीद नीति में बदलाव किया था।

कैग ने बताया कि रक्षा खरीद नीति में बदलाव साल 2015 में किया गया था और 1 अप्रैल 2016 से यह लागू हो गया था,कैग ने बताया रक्षा खरीद नीति में बदलाव के मुताबिक साल 2016 में जब भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल फाइटर जेट की डील हुई तो उसमें ऑफसेट पार्टनर घोषित करने की अनिवार्यता खत्म हो गई थी।

बदलाव के बाद अब सरकार से सरकार अंतर सरकार और एकल विक्रेता से रक्षा खरीद में ऑफसेट पार्टनर पॉलिसी लागू नहीं होगी,यानी रक्षा खरीद नीति में बदलाव के बाद विदेशी वेंडर को कॉन्ट्रैक्ट साइन करते समय अपने ऑफसेट पार्टनर के बारे में बताना जरूरी नहीं है।

रिपोर्ट के मुताबिक राफेल सौदा समेत साल 2015 से लेकर अब तक कई मामले में ऑफसेट पॉलिसी का पालन नहीं हुआ है 2005 से 2018 तक विदेशी कंपनियों से 66 हजार करोड़ रूपए के कुल 46 ऑफसेट साइन हुए इनमें से 90 फ़ीसदी मामलों में कंपनियों ने ऑफसेट के बदले सिर्फ सामान खरीदा है।

किसी भी केस में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं की गई है इस विफलता को देखते हुए सरकार ने ऑफसेट पॉलिसी को ही बदल दिया है, सवाल यह है कि मोदी सरकार कब तक लोगों के भरोसे से खेलेंगे।

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