उत्तर प्रदेश: विधानसभा उपचुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां बढ़ गई है नेताओं को अपनी जीत की टेंशन होने लगी है लेकिन सबसे ज्यादा बेचैनी सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी को हो रही है की CM योगी से लेकर तमाम कैबिनेट मंत्रियों ने अपने पूरी ताकत झोंक दी है. और इस चुनावों में बीजेपी को एक बात का खासा डर सता रहा है. अगर वह हकीकत में बदल गया तो 2022 में पार्टी को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में फाइनल परीक्षा तो 2022 में होगी लेकिन उससे पहले 2020 में सेमीफाइनल का मुकाबला होने जा रहा है क्योंकि जिन सात सीटों पर उपचुनाव हो रहे थे. उनमें से 6 सीटों पर BJP कब्जा था अगर उन 6 सीटों में से एक भी सीट बीजेपी के हाथ से निकलती है तो सत्तारुढी पार्टी बीजेपी पर दबाव बढ़ जाएगा।

सत्तारूढ़ दल से एक भी सीट निकलने का मतलब है विपक्षी दल के हाथ में ताकत आ जाएगी. वैसे भी इस वक्त विपक्ष ने सरकार को चारों तरफ से घेर रखा है. इस समय हाथरस बलरामपुर और चित्रकूट की घटनाओं को लेकर विपक्ष सरकार पर लगातार हमलावर है।

बीच-बीच में ऐसी भी खबरें आ रही हैं. कि स्थानीय अधिकारी सत्तारूढ़ दल के विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं दे रहे हैं. अगर ऐसा है तो उपचुनाव में इसका असर देखने को मिलेगा विपक्ष को मौका ना मिले इसलिए सीएम योगी से लेकर कैबिनेट मंत्री अपने पूरी ताकत लगा चुके हैं. लेकिन वहीं दूसरी ओर पार्टी जाति समीकरण बैठाने में लगी हुई है ।

बीजेपी ने पहले ही इसके सात जिन छह पार्टियों पर प्रत्याशी की घोषणा की थी. उसमें से एक भी ब्राह्मण नहीं था लेकिन विपक्ष की रणनीति को देखते हुए पार्टी ने सातवीं सीट पर ब्राह्मण को लाना पड़ा देवरिया सीट पर बीजेपी ने सत्य प्रकाश मणि त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया गया है. जबकि देवरिया से पिछला चुनाव बड़े अंतर से जीतने वाले जन्मेजय सिंह पिछड़ी जाति से थे।

देवरिया विधानसभा सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रभाव में आती है. सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ब्राह्मणों की अपेक्षा की आवाज भी बीच-बीच में उठती रही है. जातीय संतुलन बनाने के लिए देवरिया से अंत में ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारा गया है।

टिकट ना मिलने से नाराज जन विजय सिंह ने बेटा पिंटू सिंह को निर्दलीय चुनाव लड़ाने की बात की है. इससे बीजेपी की मुश्किल बढ़ती जा रही है. इसीलिए पार्टी की ओर से मना मनावल किया जा रहा है लेकिन अभी भी वह शांत नहीं हुए हैं. तो बीजेपी को हर्जाना भुगतना पड़ेगा और एक और सीट जाते ही बीजेपी पर खस्ता दबाव पड़ेगा।

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