केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ”सामान्य परिस्थितियों में एक दवा को विकसित करने, उसके क्लीनिकल ट्रायल पूरे होने और उसकी मार्केटिंग शुरू करने में कम से कम तीन साल तक का समय लगता है. असामान्य परिस्थितियों में इसकी गति बढ़ाई जा सकती है, फिर भी एक नई दवा को बाज़ार में आने में दस महीने से एक साल का समय लगता है.”

आयुष मंत्रालय ने पतंजलि की ओर से कोरोना की दवा खोज लेने के दावों को लेकर मीडिया में छपी रिपोर्ट पर संज्ञान लिया है. मंत्रालय ने साफ़ तौर पर कहा है कि कथित वैज्ञानिक अध्ययन के दावों की सच्चाई और विवरण के बारे में मंत्रालय को कोई जानकारी नहीं है.

पतंजलि ने मंगलवार को ‘कोरोनिल टैबलेट’ और ‘श्वासारि वटी’ नाम की दो दवाएं लॉन्च की, जिनके बारे में कंपनी ने दावा किया है कि ये कोविड-19 की बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज हैं.

मंत्रालय के बयान के मुताबिक़ पतंजलि को इस बारे में सूचित किया गया है कि दवाओं के इस तरह के विज्ञापन पर रोक है.

इस तरह के विज्ञापन ड्रग एंड मैजिक रिमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन ) क़ानून, 1954 के तहत आते हैं. कोरोना महामारी को लेकर केंद्र सरकार की ओर से जारी निर्देशों में भी इस बारे में साफ तौर पर कहा गया है.

आयुर्वेदिक दवाओं के विज्ञापन पर भी यह लागू होता है.

मंत्रालय ने 21 अप्रैल, 2020 को एक अधिसूचना जारी की थी जिसमें ये बताया गया था कि आयुष मंत्रालय की देखरेख में कोविड-19 को लेकर शोध अध्ययन कैसे किया जाएगा.

आयुष मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से दवा के नाम और उसमें इस्तेमाल होने वाले घटकों का विवरण पूछा है. साथ ही यह भी पूछा है कि दवा को लेकर अध्ययन कहाँ या किस अस्पताल में हुआ है, क्या प्रोटोकॉल पालन किया गया है.

मंत्रालय ने ये भी पूछा है कि सैंपल साइज़ क्या था, इंस्टीट्यूशनल एथिक्स कमेटी क्लियरेंस मिली है या नहीं, सीटीआरआई रजिस्ट्रेशन और अध्ययन से जुड़ा डेटा कहां है.

मंत्रालय ने साफ़ कहा है कि जब तक इन तमाम मामलों की जाँच नहीं हो जाती है, इस दवा से जुड़े दावों के बारे में विज्ञापनों पर रोक लगी रहेगी.

इसके साथ ही मंत्रालय ने उत्तराखंड सरकार के लाइसेंसिंग प्राधिकरण से दवा की लाइसेंस की कॉपी मांगी है और प्रोडक्ट के मंज़ूर किए जाने का ब्यौरा भी माँगा है.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक प्रोफ़ेसर बलराम भार्गव ने बीबीसी से बातचीत में पतंजलि द्वारा विकसित दवा के बारे में टिप्पणी करने से इनकार किया है.

उनसे पूछा गया था कि “क्या कोरोनिल नाम की इस दवा को कोविड-19 के मरीज़ों के इलाज में कारगर कहना सही होगा?’ उन्होंने कहा, “मैं ऐसी किसी दवा पर टिप्पणी करना नहीं चाहूँगा. पर आईसीएमआर इस दवा से संबंधित किसी भी प्रयास में शामिल नहीं रहा.”

उनसे पूछा गया था कि “क्या कोरोनिल नाम की इस दवा को कोविड-19 के मरीज़ों के इलाज में कारगर कहना सही होगा?’ उन्होंने कहा, “मैं ऐसी किसी दवा पर टिप्पणी करना नहीं चाहूँगा. पर आईसीएमआर इस दवा से संबंधित किसी भी प्रयास में शामिल नहीं रहा.”

केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी को बताया, ”सामान्य परिस्थितियों में एक दवा को विकसित करने, उसके क्लीनिकल ट्रायल पूरे होने और उसकी मार्केटिंग शुरू करने में कम से कम तीन साल तक का समय लगता है. असामान्य परिस्थितियों में इसकी गति बढ़ाई जा सकती है, फिर भी एक नई दवा को बाज़ार में आने में दस महीने से एक साल का समय लगता है.”

लेकिन पतंजलि ने कुछ हफ़्तों में ही कोरोनिल नाम की इस दवा को तैयार कर बाज़ार में लाने का ‘कारनामा’ किया है.

सीडीएससीओ के इस अधिकारी ने नाम ना ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा कि ”उनके विभाग को पतंजलि की इस दवा के क्लीनिकल ट्रायल की कोई सूचना नहीं थी.”

पतंजलि कंपनी के सीईओ आचार्य बालकृष्ण ने बीबीसी से बातचीत में यह दावा किया है कि ‘उनके संस्थान ने एक थर्ड पार्टी की मदद से क्लीनिकल ट्रायल किये हैं जिनमें पाया गया है कि कोरोनिल का सेवन करने वाले 100 प्रतिशत कोविड-19 के मरीज़ों को राहत मिली.’

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