नेहरू ने देश के साथ सच में बहुत गलत किया. अगर एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन बनवाने की शुरुआत न की होती तो आज बेचने के लिए इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ती? बताइए, छह-छह एयरपोर्ट एक साथ नीलाम करना पड़ रहा है. छह एयरपोर्ट की नीलामी प्रक्रिया पहले से जारी है. छह और एयरपोर्ट नीलाम करने की तैयारी चल रही है.

छह साल हो गया है और अभी कोई विभाग पूरा नहीं बिका. रेलवे स्टेशन, खदान, स्कूल, अस्पताल, नवरत्न कंपनियां, शिक्षा, मेडिकल, परिवहन उफ्फ! बहुत ज्यादा है! इतना बड़ा देश है, एक ही दिन में कैसे बेच दें? खरीदार भी तो चाहिए!


कुछ लोग कह रहे हैं कि क्यों बेच रहे हो? मैंने तो पहले ही कहा था ‘मैं देश नहीं बिकने दूंगा. अब यह नहीं कहा था कि ‘खुद ही थोड़ा-थोड़ा बेचूंगा’. सब थोड़ी कहा जाता है! लेकिन ये भारतवासी सब बड़े भोले हैं, अनकहा समझते नहीं हैं.


अब देखिए, नेहरू के समय से ही देश में शहरीकरण और औद्योगीकरण शुरू हुआ. उसी के कारण आज पलायन हो रहा है. न शहरीकरण होता, न उद्योग धंधे होते, न मजदूर शहर जाते, न यह दिक्कत आती. यह सब न होता तो भारत अब तक विश्वगुरु भी बन गया होता! लोग यह समझते नहीं.

अब ये नया तमाशा है कि सबको घर पहुंचाओ. हमारे भगत लोग सही कहते हैं कि शहर गए ही क्यों, गए तो अब लौटना क्यों? खैर जाने दो.


मैं तो छह नये एयरपोर्ट बेच रहा हूं. लॉकडाउन में ही सब बिक जाए तो अच्छा रहे. सब बेच बाच देने के बाद कोई नहीं कहेगा कि मजदूरों के लिए ट्रेन चलवाओ, बस चलवाओ, जहाज चलवाओ. खाना पहुंचाओ. हेन तेन, फलाना धमाका… सब बेच कर, काला चश्मा लगाकर, झोला उठाकर आराम से चल देंगे. देशवासियों को पहले ही बोल दिया है कि आत्मनिर्भर ​बनो.


देखता हूं ये नेहरू मेरा क्या करता है!
अब चलता हूं. ट्रंप का फोन आने वाला था, देखूं जरा क्या हुआ.


(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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